राजगीर में विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ पर भव्य आयोजन, राज्यपाल बोले — इस पवित्र समारोह में आना मेरे लिए सम्मान की बात

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राजगीर (नालंदा) : ऐतिहासिक रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित विश्व शांति स्तूप के 56वें स्थापना दिवस पर शनिवार को एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

राज्यपाल के आगमन पर नालंदा पुलिस द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इसके बाद उन्होंने रत्नागिरी पहाड़ी पर आयोजित मुख्य समारोह में भाग लिया, जहां पारंपरिक पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए गए।

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने संबोधन में कहा कि “आज इस पवित्र समारोह में उपस्थित होना मेरे लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है। राजगीर जैसे पावन स्थल पर, जहां भगवान बुद्ध के चरणों ने धरती को पावन किया, यह स्तूप शांति और करुणा का प्रतीक है।” उन्होंने कहा कि विश्व शांति स्तूप केवल बौद्ध धर्म की महान विरासत का प्रतीक नहीं, बल्कि भारत और जापान के गहरे सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों का भी सजीव उदाहरण है।

समारोह में जापान सहित कई देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। राज्यपाल ने विशेष रूप से जापान की सैंटोपु कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष श्री केनसुके ओरियोची, सीजीसी और सनपो के प्रतिनिधियों, पीस एंड गुडविल पिलग्रिमेज मिशन ऑफ इंडिया की डॉ. महास्वेता महाराठी, वेनेरेबल सीनियर मोंक्स तथा महाविहार और नागर मंदिर संघ के सदस्यों का अभिनंदन किया।

राज्यपाल ने अपने संबोधन में राजगीर के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी रहा है और बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यहीं पर द्वितीय धर्म चक्र परिवर्तन हुआ था और सप्तपर्णी गुफा में पहली बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था।

उन्होंने कहा कि यह आयोजन भारत और जापान के बीच मैत्री के उस अटूट बंधन का प्रतीक है, जिसकी जड़ें भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहित हैं। उन्होंने बताया कि राजगीर बुद्ध विहार सोसायटी, जिसकी स्थापना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई और परम पूज्य निचिदात्सू फूजी गुरुजी के नेतृत्व में हुई थी, पिछले पांच दशकों से अधिक समय से भारत-जापान मैत्री को सशक्त करने और विश्व शांति के संदेश को प्रसारित करने में कार्यरत है।

रत्नागिरी पहाड़ी की चोटी पर स्थित विश्व शांति स्तूप, जहां भगवान बुद्ध ने सात वर्षों तक उपदेश दिए थे, आज भी अहिंसा और करुणा में हमारी अटूट आस्था का प्रतीक है।

समारोह में बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए श्रद्धालु और बौद्ध धर्म के अनुयायी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान पारंपरिक बौद्ध प्रार्थनाएं, मंत्रोच्चारण और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित की गईं।

विश्व शांति स्तूप आज भी दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और बिहार की समृद्ध बौद्ध विरासत का गौरवशाली प्रतीक बना हुआ है।

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