वर्षों की सेवा के बाद भी प्रेरक और बरीय प्रेरकों की उपेक्षा, 17 हजार प्रेरकों ने NOTA पर वोट देने का किया आह्वान

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बिहार शरीफ (नालंदा) : वर्षों की सेवा और समर्पण के बावजूद पंचायतों में कार्यरत प्रेरक और बरीय प्रेरक उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। राज्यभर के 17 हजार प्रेरकों ने आगामी विधानसभा चुनाव में विरोधस्वरूप “नोटा” (NOTA) बटन दबाने का सामूहिक आह्वान किया है।

प्रेरकों का कहना है कि वर्ष 2011 में बिहार सरकार के पत्रांक 402 के आलोक में “पंचायत लोक शिक्षा केंद्र” के तहत उनकी बहाली की गई थी। प्रत्येक पंचायत में एक बरीय प्रेरक और एक प्रेरक की नियुक्ति की गई थी, जिनका मासिक मानदेय मात्र ₹2000 निर्धारित था। प्रेरकों का आरोप है कि 2011 से 2018 तक उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ सरकार की विभिन्न योजनाओं — जैसे अपना गांव अपनी योजना, मानव श्रृंखला, मद्य निषेध अभियान, मतदाता जागरूकता कार्यक्रम, बापू आपके द्वार योजना आदि — में सक्रिय भूमिका निभाई। उनका मुख्य कार्य साक्षरता अभियान को सफल बनाना, निरक्षरों को शिक्षित करना और उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ना था।

उनकी मेहनत से ही बिहार की साक्षरता दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ, जिसके लिए बिहार सरकार को राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बावजूद इसके, वर्ष 2018 में बिना किसी लिखित आदेश या वैकल्पिक व्यवस्था के सभी प्रेरकों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। प्रेरकों का कहना है कि पिछले सात वर्षों में उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों से अपनी पुनर्नियोजन की मांग की, लेकिन हर बार केवल आश्वासन मिला, समाधान नहीं। अब अधिकांश प्रेरकों की उम्र 50 से 55 वर्ष के बीच हो चुकी है। आर्थिक संकट के कारण उनके परिवार कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई है।

सरकार से पुनः नियुक्ति की मांग प्रेरकों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें किसी विभाग में नियमित सेवा में समायोजित किया जाए ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें और अपनी सेवाओं का उचित मूल्यांकन पा सकें। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य के सभी 17 हजार प्रेरक और बरीय प्रेरक “NOTA” दबाने के लिए बाध्य होंगे।

प्रेरकों का कहना है कि एक पंचायत में औसतन दो प्रेरक कार्यरत थे और प्रत्येक पंचायत में लगभग 200 मतों पर उनका सीधा प्रभाव है। इस प्रकार 38 जिलों में फैले 17 हजार प्रेरकों का यह निर्णय लगभग दो लाख से अधिक वोटों को प्रभावित कर सकता है। प्रेरको ने कहा की हम वही लोग हैं जिन्होंने बिहार की साक्षरता को नई दिशा दी। अब हमें भुलाया न जाए। हमारी सेवाओं का सम्मान किया जाए और हमें फिर से काम करने का अवसर प्रदान किया जाए।”

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