राजगीर में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा: मोरा गांव के किसानों का विरोध तेज, जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी

नालंदा जिले में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहण का मामला गहराता जा रहा है। विशेष रूप से मोरा गांव के किसान इस अधिग्रहण के खिलाफ एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अगर उनकी शेष बची जमीन भी अधिग्रहित की गई, तो वे पूरी तरह भूमिहीन हो जाएंगे और उनकी आजीविका समाप्त हो जाएगी।
किसानों का आरोप: अधिग्रहण से खत्म हो जाएगी आजीविका
मोरा गांव के किसानों का कहना है कि पूर्व में उनकी 133 एकड़ उपजाऊ और सिंचित भूमि को बिहार पुलिस अकादमी के लिए अधिग्रहित किया गया था। अब गांव की कुल 250 एकड़ उपजाऊ भूमि बची है, जो उनकी आजीविका का एकमात्र सहारा है। किसानों का आरोप है कि इस बार भी उनकी जमीन छीनने की योजना बनाई जा रही है, जिससे पूरा गांव भूखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा।
गांव की कुल आबादी लगभग 2100 है, और अधिकांश परिवार खेती पर निर्भर हैं। किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर अधिग्रहण नहीं रोका गया, तो वे धरना-प्रदर्शन और आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

किसानों ने लिया आंदोलन का निर्णय
मोरा गांव के प्रमुख किसानों, जैसे कमलेश प्रसाद, शशिभूषण कुमार वर्मा, जयराम सिंह, शैलेंद्र कुमार प्रभाकर, और अन्य ने बैठक कर इस अधिग्रहण का विरोध करने का फैसला लिया है।
किसानों द्वारा उठाए गए कदम:
- ज्ञापन सौंपने की योजना:
किसान अपनी मांगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नालंदा के जिलाधिकारी के सामने रखेंगे। - धरना-प्रदर्शन की चेतावनी:
अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो किसान बड़े स्तर पर धरना-प्रदर्शन करेंगे। - आत्मदाह की धमकी:
किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी जमीन अधिग्रहित की गई, तो वे आत्मदाह जैसे कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
किसानों की दलीलें
मोरा गांव के किसानों ने सरकार के सामने अपनी दलीलें रखते हुए कहा है कि:
- एक ही गांव की जमीन बार-बार लेना अनुचित:
किसानों का कहना है कि पहले ही उनकी बड़ी मात्रा में जमीन विकास कार्यों के लिए ली जा चुकी है। बार-बार अधिग्रहण करना उनके साथ अन्याय है। - उपजाऊ और सिंचित भूमि का अधिग्रहण:
प्रस्तावित भूमि पूरी तरह से उपजाऊ और सिंचित है। यह उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है, और इसे अधिग्रहित करना उनकी जीविका पर सीधा प्रहार होगा। - गांव का अस्तित्व खतरे में:
बार-बार जमीन छीनने से गांव का अस्तित्व और पहचान खतरे में पड़ गई है। किसान सवाल कर रहे हैं कि क्या विकास के नाम पर पूरा गांव खत्म कर दिया जाएगा? - विकास के नाम पर अन्याय:
किसानों का कहना है, “यह कैसा विकास है, जिसमें हमें अपने घर और जमीन से बेदखल कर दिया जाएगा?”

किसानों की मांगें
किसानों ने सरकार से अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से रखा है:
- मोरा गांव की भूमि का अधिग्रहण तुरंत रोका जाए।
- अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए किसी अन्य स्थान का चयन किया जाए।
- किसानों की आजीविका और उनके अस्तित्व को सुरक्षित रखा जाए।
सरकार के सामने चुनौती: विकास और आजीविका के बीच संतुलन
मोरा गांव के किसानों के विरोध ने सरकार के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है। विकास कार्यों को आगे बढ़ाना जरूरी है, लेकिन इसके लिए किसानों की आजीविका और अस्तित्व को खतरे में डालना सही नहीं है।
सरकार को चाहिए कि:
- विकल्पों की समीक्षा कर ऐसी जगह का चयन करे, जिससे किसानों की जमीन और आजीविका पर असर न पड़े।
- किसानों से संवाद कर उनकी चिंताओं को दूर करे।
- ऐसी पुनर्वास नीति तैयार करे, जो किसानों के हितों की रक्षा करे।
मोरा गांव के किसानों का विरोध केवल जमीन अधिग्रहण का नहीं, बल्कि उनकी आजीविका, पहचान और अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता दिखाते हुए समाधान निकालना होगा।
विकास और जनजीवन के बीच संतुलन बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि सही कदम नहीं उठाए गए, तो यह आंदोलन बड़े स्तर पर उभर सकता है, जो न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि सरकार की नीतियों के लिए भी चुनौती बन सकता है।
