पैजाबा गुरुद्वारा में गुरु अर्जुन देव जी महाराज के 419वें शहीदी दिवस पर व्याख्यानमाला, शहीदों के सरताज को श्रद्धांजलि देने उमड़ा संगत का सैलाब

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बिहार शरीफ (नालंदा) : शहीदों के सरताज, पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के 419वें शहीदी दिवस पर रविवार को बिहारशरीफ स्थित गुरुद्वारा नानकशाही संगत, पैजाबा (भरांव पर) में भव्य व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता धर्म प्रचार कमिटी, तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब के अध्यक्ष महेन्द्रपाल सिंह ढिल्लन जी ने की।

कार्यक्रम की शुरुआत हजूरी रागी जत्था भाई बिक्रम सिंह द्वारा किए गए भावपूर्ण शबद कीर्तन से हुई, जिससे संगत भावविभोर हो उठी। तत्पश्चात ज्ञानी सतनाम सिंह ने गुरुवाणी का गूढ़ व्याख्यान प्रस्तुत किया।

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महेंद्रपाल सिंह ढिल्लन जी ने अपने संबोधन में कहा कि सन् 1606 में मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश पर गुरु जी को अमानवीय यातनाएं दी गईं और अंततः उन्हें शहीद कर दिया गया। उन्होंने धर्म, सत्य और सेवा के मार्ग पर चलते हुए बलिदान दिया।

बिहार सिख फेडरेशन नालंदा के मीडिया प्रभारी राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि गुरु जी मानवीय मूल्यों के प्रतीक थे। उन्होंने सद्गुण, सहृदयता और समभाव की शिक्षा दी। मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें गुरु गद्दी प्राप्त हुई थी।

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फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष त्रिलोक सिंह निषाद जी ने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी एक महान विद्वान, समाज सुधारक और सच्चे संत थे। उन्होंने जात-पात, धर्म और वर्गभेद को समाप्त करते हुए सभी के लिए अपने द्वार खोले। गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन भी उन्हीं की देखरेख में हुआ, जिसमें सूफी संतों सहित विभिन्न पंथों की वाणी को स्थान दिया गया।

उन्होंने बताया कि अमृतसर स्थित श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की नींव मुस्लिम संत साईं मियां मीर से रखवाई गई थी। गुरु जी की बढ़ती लोकप्रियता से भयभीत होकर बादशाह जहांगीर ने उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए प्रताड़ित किया, लेकिन उन्होंने झुकने के बजाय शहादत को चुना। उन्हें उबलते पानी में बैठाया गया, तवे पर तपाया गया और अंततः 30 मई 1606 को रावी नदी में स्नान करने की इच्छा जताकर अपने प्राण त्याग दिए।

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इस महान बलिदान ने सिख पंथ को नई दिशा दी और अत्याचार के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी।

शंखनाद संस्था के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि गुरु अर्जन देव जी ने एकता, समरसता और समानता का संदेश दिया। वे संस्कृत, पंजाबी और स्थानीय भाषाओं के विद्वान थे। उनकी रचनाएं आज भी आदिग्रंथ में संग्रहीत हैं।

ज्ञानी सतनाम सिंह जी ने बताया कि गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को हुआ था। वे गुरु रामदास जी और माता बीबी भानी के पुत्र थे। उन्हें गुरमुखी की शिक्षा उनके नाना गुरु अमरदास जी से प्राप्त हुई थी। 1581 में उन्हें सिखों का पांचवां गुरु बनाया गया।

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मानवाधिकार संघ के डॉ. आनंद मोहन झा ने गुरु जी को मानवता का सच्चा सेवक, धर्म रक्षक और युगपुरुष बताया।

कार्यक्रम में भाई त्रिलोक सिंह निषाद जी द्वारा लिखित पुस्तक “तेरा किया मीठा लागे, हरनाम पदारथ नानक मांगे” का विमोचन भी किया गया।

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इस पावन अवसर पर महापौर श्रीमती अनिता देवी, तख्त श्री हरमंदिर साहिब पटना के प्रबंधक भाई दिलीप सिंह पटेल, ग्रंथी भाई सतनाम सिंह, फेडरेशन अध्यक्ष वीर सिंह, परमजीत सिंह, पूरण सिंह, हरपाल सिंह जौहर, कोषाध्यक्ष रणजीत सिंह, साहित्यकार धनञ्जय श्रोत्रिय, वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन, धीरज कुमार, नवनीत कृष्ण, परमेश्वर कुमार पटेल, योगिंदर सिंह, स्वारथ सिंह, रविंद्र सिंह, धर्मवीर सिंह, भोला सिंह, सुनीता देवी, सुधा देवी, चंद्रशेखर प्रसाद, जीरा देवी, अमित कुमार, बजरंग दल संयोजक कुंदन कुमार आदि गणमान्य व्यक्तियों ने सेवाएं दीं।

कार्यक्रम का समापन सामूहिक अरदास, कीर्तन व श्रद्धालुओं के बीच ठंडे मीठे जल की छबील वितरण के साथ हुआ। संगत ने गुरु अर्जन देव जी को शत-शत नमन किया।

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