नव नालंदा महाविहार ने जेठियन से राजगीर तक 11वीं ‘धम्मयात्रा’ का भव्य आयोजन किया। यह ऐतिहासिक यात्रा, भगवान बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों की स्मृति में आयोजित, प्राचीन बुद्धचारिका पथ से होकर गुजरी। यह यात्रा जेठियन (प्राचीन नाम यष्ठिवन) से शुरू होकर वेणुवन, राजगीर में संपन्न हुई।
इस यात्रा में नव नालंदा महाविहार के शिक्षक, कर्मचारी, छात्र-छात्राएँ, भिक्षु-भिक्षुणियाँ और भारत सहित श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, अमेरिका, जापान, चीन, लाओस आदि देशों से आए बौद्ध श्रद्धालुओं और भिक्षुओं ने भाग लिया।
यात्रा का उद्देश्य और आयोजन
धम्मयात्रा का उद्देश्य भगवान बुद्ध के मार्ग और उपदेशों को याद करते हुए शांति और करुणा का संदेश फैलाना है। यह यात्रा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को ऐतिहासिक स्थलों से जोड़ने और उनके महत्व को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास है।
इस धम्मयात्रा का आयोजन नव नालंदा महाविहार द्वारा 2014 से निरंतर किया जा रहा है। इस वर्ष भी इसे सफलतापूर्वक आयोजित किया गया। कार्यक्रम में सहयोगी संस्थानों का योगदान महत्वपूर्ण रहा, जिनमें शामिल हैं:
लाइट ऑफ बुद्ध धम्म फाउंडेशन इंडिया
बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति
अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्फिडेरेशन, नई दिल्ली
पर्यटन विभाग, बिहार सरकार
जेठियन ग्रामवासी
यात्रा का नेतृत्व नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने किया। लगभग 15 किलोमीटर लंबी इस यात्रा में 1500 से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए।
इतिहास की झलक: धम्मयात्रा का महत्व
ऐतिहासिक दृष्टि से यह मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान बुद्ध, सम्यक सम्बोधि प्राप्ति के पश्चात, सारनाथ में धर्मचक्रप्रवर्तन सूत्र का उपदेश देने के बाद मगधराज बिंबिसार से मिलने राजगृह इसी मार्ग से आए थे।
कहा जाता है कि बिंबिसार को जब ज्ञात हुआ कि भगवान बुद्ध राजगृह आ रहे हैं, तो उन्होंने जेठियन (यष्ठिवन) में अपने अमात्यों सहित भगवान बुद्ध का स्वागत किया और आदरपूर्वक उन्हें राजकीय उद्यान वेणुवन में ठहराया। इसके बाद मगधराज बिंबिसार ने वेणुवन को भिक्षुसंघ को दान स्वरूप समर्पित कर दिया।
“बुद्धचारिका दिवस” की घोषणा की मांग
नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा:
“यह मार्ग केवल भगवान बुद्ध की यात्राओं का साक्षी नहीं है, बल्कि उनके शिष्यों और फाह्यान व ह्वेनसांग जैसे चीनी यात्रियों की ऐतिहासिक धर्मयात्राओं का भी गवाह है। भगवान बुद्ध ने इसी मार्ग पर कई बार चारिका की और उपदेश दिए। इसलिए, इस महत्वपूर्ण दिन को ‘बुद्धचारिका दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए।”
मुख्य सहभागिता
इस कार्यक्रम में कई गणमान्य और बौद्ध धर्मगुरुओं ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थे:
वागमों डिक्सी
डॉ. संघ प्रिय महाथेरो
डॉ. महाशेवता महारथ
भिक्षु खुनजंग डेचन
भिक्षु अमफो
इसके अतिरिक्त नव नालंदा महाविहार के शिक्षक, छात्र, शोधार्थी और गैर-शैक्षणिक सदस्य भी सक्रिय रूप से शामिल रहे।
11वीं धम्मयात्रा ने न केवल भगवान बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों को पुनर्जीवित किया, बल्कि बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक महत्व और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक सशक्त प्रयास किया। यह आयोजन भगवान बुद्ध के शांति, करुणा और मैत्री के संदेश को फैलाने में एक अहम कड़ी साबित हुआ।