पेयजल संकट और कूड़ा डंपिंग के खिलाफ ग्रामीणों का प्रदर्शन: भाकपा ने नगर निगम कार्यालय पर किया धरना

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नालंदा जिले के बड़ी पहाड़ी क्षेत्र में गंभीर पेयजल संकट और पंचाने नदी के किनारे अवैध कूड़ा डंपिंग के विरोध में स्थानीय ग्रामीणों ने शनिवार को नगर निगम कार्यालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। इस धरने का नेतृत्व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने किया, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए।

पेयजल संकट से ग्रामीण परेशान

भाकपा नेता शिवकुमार यादव ने बताया कि वार्ड संख्या 19 और 20 में जलापूर्ति के लिए पाइपलाइन बिछाई गई है, लेकिन अब तक पानी की आपूर्ति शुरू नहीं हो सकी। इसके कारण ग्रामीणों को ठंड के मौसम में भी पानी के लिए भटकना पड़ रहा है।

  • स्थानीय निवासी और हिरण्य पर्वत पर आने वाले पर्यटक, दोनों ही इस पेयजल संकट से जूझ रहे हैं।
  • पर्यटकों को मजबूरन बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है, जबकि ग्रामीण गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

कूड़ा डंपिंग से स्वास्थ्य पर खतरा

पंचाने नदी के तट पर हो रही अवैध कूड़ा डंपिंग ने स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया है।

  • भाकपा के जिला मंत्री राजकिशोर प्रसाद ने बताया कि कोसूक, राणा बिगहा, सिपाह, पचौड़ी और लखरावा जैसे गांवों की करीब 10,000 की आबादी इससे प्रभावित है।
  • कचरे की दुर्गंध और धुएं से स्थानीय लोगों को सांस की बीमारियां हो रही हैं।

प्रशासन की उदासीनता

  • फरवरी 2024 में जिलाधिकारी ने नगर निगम को कूड़े के वैज्ञानिक निस्तारण का आदेश दिया था।
  • 10 महीने बीतने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।

उग्र आंदोलन की चेतावनी

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द से जल्द इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।

धरने में शामिल प्रमुख नेता

धरने में डॉ. मनोज कुमार, उमेश चंद्र चौधरी, विष्णु देव पासवान, साधु पासवान, किशोरी साह, महेंद्र ठाकुर, गुड्डू केवट, रामदेव मंडल और राजीव रंजन कुमार जैसे प्रमुख स्थानीय नेता शामिल हुए।

स्वच्छ भारत अभियान पर सवाल

स्वच्छ भारत अभियान के तहत स्वच्छता को लेकर बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन नालंदा जैसे ऐतिहासिक महत्व के शहर में बुनियादी नागरिक सुविधाओं की बदहाल स्थिति इस अभियान पर सवाल खड़ा करती है।

  • ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की नीतियों और दावों के बावजूद उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है।
  • यह स्थिति न केवल प्रशासन की उदासीनता को दर्शाती है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।

ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि प्रशासन ने इन समस्याओं का शीघ्र समाधान नहीं किया, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। यह प्रदर्शन प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों की याद दिलाने और नागरिकों की बुनियादी समस्याओं का समाधान कराने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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