इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन करेगा पीड़िता की पैरवी

बच्ची से बलात्कार के प्रयास के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। गैर-सरकारी संगठन आइडिया ने इस निर्णय को बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम करार दिया है।
शीर्ष अदालत ने इस फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC) की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए उसे पीड़िता की पैरवी करने की अनुमति दी है। JRC बाल अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए देशभर के 416 जिलों में कार्यरत 250 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों का एक नेटवर्क है। यह संगठन इस कानूनी लड़ाई की अगुआई करेगा ताकि पीड़िता की गरिमा, अधिकारों की रक्षा हो सके और उसे न्याय मिल सके। नालंदा में कार्यरत आइडिया संस्थान भी JRC का एक महत्वपूर्ण सहयोगी संगठन है।
आइडिया संस्थान की निदेशक रागिनी कुमारी ने कहा,
“अगर देश में एक भी बच्चा अन्याय का शिकार है, तो JRC उसके साथ है। न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले का स्वत: संज्ञान लेने से स्पष्ट है। JRC इस बच्ची को न्याय दिलाने के प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। हमारा संगठन बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल मजदूरी जैसे अपराधों के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है।”
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए इस पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे “स्तब्ध करने वाला और असंवेदनशील” करार दिया।
हाई कोर्ट के फैसले की पृष्ठभूमि:
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 11 वर्षीय पीड़िता के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि— वक्ष पकड़ना, सलवार का नाड़ा खोलना और उसे घसीट कर पुलिया के नीचे ले जाना, बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता।
इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की खंडपीठ ने सख्त नाराजगी जताई और भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए। पीठ ने कहा कि “यह निर्णय असंवेदनशील है और कानून की किसी भी समझ से परे है।”
पीड़िता के वकील की प्रतिक्रिया
JRC और पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता रचना त्यागी ने कहा,
“इस मामले में साढ़े तीन साल से अधिक समय तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई और तीन साल से ज्यादा समय तक कानूनी कार्यवाही बिना किसी औपचारिक जांच के चलती रही। एक गरीब और कमजोर परिवार की इस बच्ची के साथ यह लापरवाही गंभीर अन्याय है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हमारी विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार किए जाने से हमें राहत मिली है। हम पीड़िता की हरसंभव मदद और उसे न्याय दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति
खंडपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में की गई कुछ विशेष टिप्पणियों (पैरा 21, 24 और 26) को “असंवेदनशील” करार देते हुए सख्त आपत्ति जताई। पीठ ने कहा कि यह फैसला चार महीने तक चली विचार-विमर्श प्रक्रिया के बाद आया, फिर भी यह अमानवीय और कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।
मूल मामले की स्थिति
इस मामले में निचली अदालत ने इसे बलात्कार के प्रयास का मामला मानते हुए आरोपियों पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत मामला दर्ज किया था।
हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने विवादास्पद फैसले में कहा कि—
“बच्ची के वक्ष को छूना, उसे जबरन पुलिया के नीचे घसीटना और फिर राहगीरों के पहुंचते ही भाग जाना, IPC की धारा 376/511 (बलात्कार के प्रयास) या पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।”
इसके आधार पर हाई कोर्ट ने आरोपियों पर लगाए गए आरोपों को हल्का करते हुए धारा 354(B) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 के तहत मामला दर्ज किया।
