मां शीतला के दरबार में उमड़ेगी भक्तों की भीड़: 22 मार्च को नालंदा में परंपरागत मेले का आयोजन

शीतलाष्टमी के पावन अवसर पर 22 मार्च को नालंदा में मां शीतला के दरबार में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है। बिहार शरीफ से तीन किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर में इस वर्ष भी परंपरागत मेले का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन की तैयारियां अंतिम चरण में हैं।
विशेष व्यवस्थाएं
स्थानीय प्रशासन और मेला आयोजन समिति के अनुसार, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं। यातायात नियंत्रण, सुरक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है। पुलिस ने भीड़ नियंत्रण के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया है।
शीतलाष्टमी की परंपरा
शीतलाष्टमी के दिन भक्तगण प्रातःकाल स्नान कर व्रत रखते हैं और मां शीतला को ठंडे (बासी) भोजन का भोग लगाते हैं। माता शीतला को चेचक और अन्य संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। उनकी कृपा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम
मेले में हस्तशिल्प, लोक कला, और विभिन्न प्रकार के मनोरंजन साधन उपलब्ध होंगे। बच्चों के लिए विशेष झूले और खेल-खिलौनों की दुकानें सजाई गई हैं।
मिठ्ठी कुआं का विशेष महत्व
मिठ्ठी कुआं, जहां से माता की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पूजनीय है। मंदिर के पुजारी प्रभात पांडे के अनुसार, इस कुएं का पानी कभी नहीं सूखता और यहां स्नान करने से चेचक जैसी बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
मंदिर की ऐतिहासिक मान्यता
मान्यता है कि राजा वृक्षकेतु को स्वप्न में माता शीतला ने पंचाने नदी किनारे अपनी मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया था। जब जमीन की खुदाई की गई, तो वहां से मां की प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसे बाद में मंदिर में स्थापित कर दिया गया। यही स्थान आज मघड़ा का शीतला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
बसियौरा की परंपरा
शीतलाष्टमी के दिन मघड़ा गांव सहित आसपास के एक दर्जन गांवों में चूल्हे नहीं जलाए जाते। शुक्रवार को सप्तमी के दिन मिठ्ठी कुआं के जल से प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे शनिवार को बसियौड़ा के रूप में ग्रहण किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन चूल्हा जलाने से माता को कष्ट होता है, जिससे अनिष्ट फल मिल सकता है।
श्रद्धालुओं के लिए अपील
मेला आयोजकों ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया है कि वे सुरक्षा नियमों का पालन करें और मेले को स्वच्छ रखने में सहयोग दें। हजारों श्रद्धालु इस पवित्र मेले में भाग लेने के लिए पहुंचेंगे, जिससे क्षेत्र में भक्ति और उल्लास का माहौल रहेगा।
