नालंदा ने खोया शिक्षा का स्तंभ, डॉ. रॉय उमेश चंद्रा नहीं रहे, शिक्षक नहीं, एक युग चला गया – डॉ. चंद्रा को श्रद्धांजलि में भीगीं आंखें

बिहार शरीफ (नालंदा ) : नालंदा जिले के वरिष्ठ शिक्षाविद और शिक्षा के क्षेत्र में अमिट योगदान देने वाले डॉ. रॉय उमेश चंद्रा के असामयिक निधन से पूरे जिले में शोक की लहर है। उनके निधन के बाद सोमवार को डेफोडिल पब्लिक स्कूल के सभागार में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें जिले भर के शिक्षकों, शिक्षाविदों, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

सभा में उपस्थित लोगों ने डॉ. चंद्रा के व्यक्तित्व और उनके योगदान को याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने कहा कि वे केवल एक शिक्षक नहीं थे, बल्कि जिले की शिक्षा व्यवस्था के मजबूत स्तंभ थे।
नालंदा सहोदया क्लस्टर के सचिव आशीष रंजन ने भावुक होते हुए कहा,
“उनके नेतृत्व में कई विद्यालयों की नींव रखी गई। RPS स्कूल की स्थापना उन्हीं के हाथों हुई थी। व्यक्तिगत जीवन में भी उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया। उनका जाना किसी अभिभावक के जाने जैसा है।”

संरक्षक कर्नल आर.एस. नेहरा ने बताया कि जिस दिन डॉ. चंद्रा का निधन हुआ, उसी दिन वे अपनी पत्नी का हवन कर रहे थे।
“यह समाचार मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति जैसा था। वे हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत थे।”
पब्लिक स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने कहा,
“शिक्षा जगत को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई संभव नहीं। वे हम सभी के अभिभावक समान थे।”

पब्लिक स्कूल एसोसिएशन, नालंदा के पूर्व कोषाध्यक्ष मनीष कुमार गौतम ने अपने संबोधन में कहा
“डॉ. चंद्रा को एक सरल, हंसमुख और सहयोगी व्यक्ति के रूप में याद किया जायेगा। उन्होंने कहा कि डॉ. चंद्रा के प्रयासों से नालंदा में निजी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में खड़े हो सके। “हमने एक ऐसे मार्गदर्शक को खोया है जिनकी भूमिका कभी नहीं भुलाई जा सकती।”
शोक सभा के दौरान दो मिनट का मौन रखा गया और उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।
इस अवसर पर कर्नल आशीष नेहरा, अरविंद कुमार सिंह, मनीष कुमार गौतम, सुधांशु रंजन, डॉ. स्वाति, सलीम सर, संजीव कुमार, रवि चंद्रा, विश्वनाथ, जितेंद्र कुमार, रुबीना निसात, सुरेंद्र कुमार, अशोक कुमार, एस. के. राही सहित दर्जनों शिक्षकों और गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही।
डॉ. रॉय उमेश चंद्रा के निधन को शिक्षा जगत ने एक युग का अंत बताया। उनका जाना केवल एक शिक्षक का नहीं, बल्कि समाज सेवा और समर्पण की भावना के प्रतीक एक युग का अवसान है।