बिहारशरीफ में 10 से 17 जुलाई तक लंगोट मेला, 13 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति बनी आस्था और विश्वास का प्रतीक, उमड़ेगी लाखों श्रद्धालुओं की भीड़

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बिहारशरीफ के पंचाने नदी तट स्थित बाबा मणिराम अखाड़ा में 10 से 17 जुलाई तक आयोजित होने वाले ऐतिहासिक लंगोट मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। सात सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी आस्था का प्रतीक यह मेला एक बार फिर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ का साक्षी बनेगा। मंदिर परिसर की रंगाई-पुताई पूरी हो चुकी है और झूले, दुकानें सहित अन्य व्यवस्थाएं सजाई जा रही हैं।

मेले की शुरुआत परंपरा के अनुसार पुलिस प्रशासन के वरीय अधिकारियों द्वारा बाबा की समाधि पर प्रथम लंगोट चढ़ाने से होगी, जिसके साथ ही “बाबा मणिराम की जय” के जयघोष से शहर गूंज उठेगा। उसके बाद सात दिनों तक श्रद्धालु लंगोट चढ़ाकर बाबा से अपनी मनोकामनाएं मांगेंगे।

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बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के उपाध्यक्ष अमरकांत भारती ने बताया कि इस बार मेले को और भी भव्य रूप दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की संभावना है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष पंडाल, ठहरने की व्यवस्था और 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। सुरक्षा को लेकर पूरे मेला क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

इस बार मेले के समापन अवसर पर पहली बार बनारस से आए पंडितों द्वारा भव्य गंगा आरती का आयोजन भी किया जाएगा। वहीं, बच्चों के लिए ड्रैगन झूला, ब्रेक डांस, टावर झूले लगाए जा रहे हैं। महिलाओं के लिए श्रृंगार सामग्री की दुकानें और स्थानीय स्वादों से भरपूर चाट-पकौड़ी के स्टॉल भी आकर्षण का केंद्र होंगे।

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बाबा मणिराम अखाड़ा का इतिहास वर्ष 1238 ईस्वी से जुड़ा है, जब संत शिरोमणि बाबा मणिराम अयोध्या से इस स्थान पर आए थे। उन्होंने ‘स्वस्थ तन से ही स्वस्थ मन’ का संदेश देते हुए अखाड़ा स्थापित किया और वर्ष 1300 में यहीं जीवित समाधि ली। तब से यह स्थल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

वर्ष 2012 से यहां अखंड ज्योति प्रज्वलित है, जो अयोध्या की बड़ी छावनी से लाई गई थी। यह ज्योति आज आस्था की अखंडता और बाबा मणिराम की तपोभूमि की गरिमा का प्रतीक बन चुकी है।

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मेले का संपूर्ण संचालन अनुमंडलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित न्यास समिति द्वारा किया जा रहा है, जो हर वर्ष की तरह इस बार भी श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।

700 वर्षों से भी अधिक पुरानी परंपरा को जीवंत बनाए रखने वाले इस मेले में प्रदेश ही नहीं, देशभर से श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।

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